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४२५ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. जावस्तुति पूजना एह आखे ॥ ६४ ॥ इति विंशति स्तुतिपूजा ॥ २०॥
॥ अथ एकविंशति कोशपूजा ॥ दोहा ॥ ॥निज सुकृतउदये लडं, न्यायोपार्जित वित्त ॥वृद्धि जिनपति कोशनी, करे पूजा जहसत्ति॥६५॥ ढाल ॥ रूपैया सोनैया, अजिरामी अतिचंग ॥ हूण पूत. लिया गब्बर, उपन्न नेद प्रसंग ॥ पुण्ये पामी लबी, खळीमति जिनकोश ॥ वृद्धि करो अप्पा जरो, निज गुण नावसंतोष ॥ ६६ ॥ काव्यम् ॥ प्रतिकणे जेह जिनराज आणे, निज परनाव विन्नाण नाणे॥ जेहथी आत्मगुणगण वा, नावथी कोशनी वृद्धि साधे ॥ ६७ ॥ इति एकविंशति कोशपूजा ॥१॥
॥दोहा॥ ॥एम एकवीश विधि पूजना, विरचे जे थिर चित्त ॥ मानवनव सफलो करे, वाधे समकित वित्त ॥ ६ ॥ ढाल ॥ अगणित गुणगण आगर, नागरवंदितपाय ॥ श्रुतधारी उपकारी,ज्ञानसागर उवद्याय ॥तास चरणकज सेवक, मधुकर परे लयलीन ॥ श्रीजिनपूजा गार, जिनवाणी रसपीन ॥ ६ए ॥ काव्यम् ॥ संवत् गुण युग अचल छ, हर्षनर गाश्यो श्रीजिनें3॥
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