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४१६ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. झानादिक गुण गवे, नावे स्वस्तिक एह ॥ ३० ॥ काव्यम् ॥ खस्तिक पूरतां जिनप आगे, स्वस्ति श्री नकल्याण जागे ॥ जन्म जरा मरणादि अशुन नागे, नियति शिवशर्म रहे तास आगे ॥३१॥ इति नवमाअदतपूजा ॥ ए॥
॥ अथ दशम पत्रपूजा ॥ दोहा ॥ ॥ अमल अखंडित अग्रयुत, शुन्न संख्याए पत्त ॥ जिणकरपत्ते पत्त नवि, ठवतां बहु गुण पत्त ॥ ३॥ ढाल ॥ विश्वगुणाकर नागर, श्रादर धरी ग्रहे जास ॥ नोजन उत्तर देवे, लेवे तस मुख वास ॥ तेह सुपत्ते पूजतां, पूजक वाधे नूर ॥ अहमरुवादिक पत्ते, विनत्ति जत्ते पूर ॥३३॥ काव्यम् ॥ पूजना पत्र शुचि नाव जागे, अग्र उपयुक्तता सविदोष तागे॥ नावतंबोल श्री जेह माचे, शिववधू तेहथी सद्य राचे ॥ ३४ ॥ इति दशम पत्रपूजा ॥ १० ॥
॥अथ एकादश पुगीपूजा ॥ दोहा॥ ॥ उज्ज्वल शुद्ध सुखाद्यवर, नव्य नव्य जे जाति ॥ जनप्यारी सोपारी वर, पूजो जिन जली नाति॥३५॥ ढाल ॥मंगल कारण लावीए, जावीए घर घर हर्ष ॥ खस्तिक मंझन खमन, उरित तणा उत्कर्ष ॥क्रमुक
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