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विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम.
॥ तुज गुणज्ञानमां लीन थप्पा, थिर रहो डूर बंडी विगप्पा ॥ १७ ॥ इति पंचम वासपूजा ॥ ५ ॥ ॥ अथ षष्ठ धूप पूजा ॥ दोहा ॥
॥ कृष्णागरु मृगमद तगर, अंबर तुरुक्क लोबान ॥ मेली सुगंध घनसार घण, करो जिनने धूप धाय ॥ २० ॥ ढाल ॥ धूप घटी जेम महमहे, तेम दहे पातकवृंद ॥ रतिनादिनी जावे, पावे मन प्राणंद ॥ जे जिन पूजे धूपे, जवकूपे फरी तेह ॥ नावे पावे ध्रुव घर, यावे सुख वेह ॥ २१ ॥ काव्यम् ॥ जिनघर वासतां धूप पूरे, मित दुर्गंधता जाय डूरे ॥ धूप जिम सहज ऊर्ध्वग स्वजावे, कारका उच्च गति जाव पावे ॥ २२ ॥ इति षष्ठ धूपपूजा ॥ ६ ॥
॥ अथ सप्तम दीपपूजा ॥ दोहा ॥
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॥ मणिमय रजत ताम्र प्रमुख, पात्र जरी घृत पूर ॥ वृत्ति सूत्र कौसुंजनी, करो प्रदीप सनूर ॥ २३ ॥ ढाल ॥ मंगलदीप वधावो गावो जिनगुणं गीत || दीप तथी जेम आालिका, मालिका मंगल नित || दीप तणी शुज ज्योति, द्योतित जिनमुख चंद ॥ निरखी दरखो जविजना, जेम लहो पूर्णानंद ॥ २४ ॥ काव्यम् ॥ जिनगृहे दीपमाला प्रकाशे, तेहथी
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