________________
४१२
विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम.
॥ ढाल ॥ सकल संताप निवारण, गरण सविजवि चित्त ॥ परम अनीदा रिहा, तनु चरचो नवि नित्य || निज रूपे उपयोगी, धारी जिनगुण गेह || नाव वंदन सुहजावथी, टाले पुरित अबेह ॥ ए ॥ काव्यम् ॥ जिनतनु चरचतां सकल नाकी, कहे कुग्रह उष्णता श्राज थाकी ॥ सकल निमेपता आज माकी, जव्यता म तपी श्राज पाकी ॥ १० ॥ इति द्वितीय विलेपनपूजा ॥ २ ॥
॥ अथ तृतीय भूषणपूजा ॥ दोहा ॥
११ ॥
॥
॥ तिलक मुकुट कुंमल जुगल, कुंमल जुगल, अंगद कंठी भूषणभूषित जिनतनु, करी पामो जवपार ॥ ॥ ढाल ॥ मणि मुगताफल हीरला, लालडी पाच पीरोज || नीलवी विडुम पुष्करे, लसणीया लहे बहु मोज | कनकजडित वर भूषणे, भूषित जिनवर देह || साधक धर्म जगायवा, अतिशय संपद्र एह ॥ १२ ॥ काव्यम् ॥ शोजता भूषण देखी बीजे, जगमयी आतमा स्वगुण बीजे ॥ अविकारी जिन तणे देखी एह, जवि लहे तत्त्व आणंद रेह ॥ १३ ॥ इति तृतीय भूषणपूजा ॥ ३ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
हार ॥
www.jainelibrary.org