SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 419
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीश्रावकगुणोपरि एकवीशप्रकारी पूजा. ४११ पत्रनी, पुगी नैवेद्य अतीव ॥२॥ उदक वस्त्र चामर तथा, बत्र वाद्य गीत जात ॥ नृत्य स्तुति जिन. कोशनी, वृद्धि ए एकवीश गण ॥३॥ शुचि तनु तैल जलादिके, पहेरी चीवर सार ॥ पीठ त्रिको परि जिन ग्वी, जिनाणा शिर धार ॥ ४ ॥ गंगा मागध दीरनिधि, औषधि मिश्रित सार ॥ कुसुमे वासित शुचि जले, करो जिनस्नात्र उदार ॥ ५॥ ___॥ ढाल ॥ सुरती महीनानी देशी ॥ ॥ मणि कनकादिक अम विध, करी जरी कलश सफार ॥ शुन रुचि जे जिनवर न्हवे, तस नहीं कुरित प्रचार ॥ मेरुशिखर जेम सुरवर, जिनवर न्हवण अमान ॥ करता वरता निज गुण, समकित वृद्धि निदान ॥ ६॥ काव्यम् ॥ हर्ष नरी अप्सरावृंद श्रावे, स्नात्र करी एम आशीष नावे ॥ जिहां लगे सुरगिरि जंबूदीवो, अम तणा नाथ जीवो तुं जीवो ॥ ॥ इति प्रथम स्नात्रपूजा ॥१॥ ॥ अथ द्वितीय विलेपनपूजा ॥ दोहा ॥ ॥ बावनाचंदन कुंकुमे, मृगमद ने घनसार ॥ जिनतनु वेपे तस टले, मोह संताप विकार ॥ ७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy