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४१० विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. संकट विघन सब चूरे, पूरे आशारी ॥ नम ॥ १॥ अरिहंत सिकाचारज, जगजन हितकारी (२)॥ वाचक मुनिवर नमता,सुखीयां नर नारी॥नम॥२॥ दरशन ज्ञान आतम रूप,निरधारणकारी (२)॥अनिनव कर्मने रोधे, संजम हित धारी ॥ नम० ॥३॥ पूर्व करम मल शोधक,तपगुण अविकारी ()॥सिकचक्र सेवक वृद्धि, गंजीर जयकारी॥ नम ॥४॥ ॥ नव पद आरति समाप्त ॥
॥ अथ ॥ ॥ श्रावकगुणोपरि एकवीशप्रकारी
पूजा प्रारंनः ॥
॥ तत्र॥ ॥ प्रथम स्नात्रपूजा प्रारंनः॥
॥ दोहा॥ ॥ स्वस्तिश्री सुख पूरवा, कल्पवेली अनुहार ॥ पूजा नक्ति जिननी करो, एकवीश नेय विस्तार॥१॥ (पागंतरे ) विधिपूर्वक विस्तार ॥१॥स्नात्र विलेपन नूषणं, पुष्प वास धूप दीव ॥ फल अदत तेम
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