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विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. शुचि शोच गुण राची॥अकिंचनी आश सव बारी, ब्रह्म नव वाम अविकारी ॥ वा ॥२॥ समिति गुप्तिमें राता, तत्व कहे स्याछाद माता ॥ श्रात्म पर विवेची नव नीरु, साधनमें धीर ज्युं मेरु ॥ वाण ॥३॥ शासन जर वहनको धोरी, वाचना दीए चित्त जोरी ॥ वाचकपद ध्याइ एक धारा, खपे अघ कष्टके नारा ॥ वा० ॥४॥ ॥ ढाल २ जी ॥राग नेरव अथवा देवगंधार ॥ ॥ पाठक पूजो प्रेम अपार ॥पा॥ ए श्रांकणी ॥ छादश अंग नित करत सकाय, आगम मार्ग को हृदिहार ॥पा०॥ सूत्र अरथ विस्तारण रसिया, नमीए तेहने नक्ति उदार ॥ पा ॥१॥ अर्थदायी मुनिने होय सूरि,सूत्रदायी कहे वाचक सार॥पा॥ नव जीजे वरे दोय शिवकमला, और न लगवश् नेद लगार ॥ पा॥२॥जमने करे जगपूज्य प्रजु जे, पथ्थर मूर्ति ज्युं सूत्रधार ॥पा०॥ते उवकाय सकल जन पूजित, सूत्र अरथ सवि जाननदार ॥पा०॥३॥ राजकुंवर परे करे गण रक्षण, आचारजपद योग्य उदार पाते उवजाय नमन ते नावे, नवनय शोक उठेग लगार ॥ पा० ॥४॥ बावनाचंदन रस सम
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