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________________ श्रीगंजीरविजयकृत नवपदपूजा. ३५ निपावे ॥ सु० ॥ सूरि मंत्र शुन ध्यानी आतम, पंच प्रस्थाने ध्यावे ॥ विद्यादि पेठे जेम ते थापे, (तेम) ध्यातां श्राचारज थावे ॥ सु० ॥१॥ जे नावे जे परिणमे तेही, वीर जिणंद सुहावे ॥ सुजश महोदय घटमें प्रगटे, वृद्धि गंजीर सुख पावे ॥ सु० ॥२॥ काव्य तथा मंत्र बोलवां ॥ इति श्राचार्यपदपूजा ॥ ॥ अथ उपाध्यायपदपूजा ४ थी॥ ॥दोहा॥ ॥ सूत्र अर्थ विस्तारवा, सज रहे जरपूर ॥ कुमत वाद गढ जंजवा, नमो वाचक सिंधूर ॥१॥ सूरि नहीं सूरि गण तणी, करता नित्य सहाय ॥ मोह मद माया तजी, निरनिमान सदाय ॥५॥ अंगादि सूत्र अर्थना, दान दीयनमें सऊ ॥ पणविश गुणगणे शोजता, नित धरी गणि गण मजा ॥३॥ प्रवादी गज गण त्रासवा, जे पंचानन वीर॥ चेतन प्रजुता अनुनवे, नमो वाचक ते धीर ॥४॥ ॥ ढाल १ ली ॥ राग रेखतो ॥ ॥ वाचकपद प्रज तं प्यारे, करम घन समीर ज्यु दारे ॥ दमा मृड आर्जवी सोहे, परिणति मुक्ति मन मोहे ॥ वा० ॥ १॥तपो तप संजमे माची, सत्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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