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३ए विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥३॥ नविजन बोधे तत्त्वने शोधे, सवि गुण संपत्त पाश् ॥ न ॥४॥ संवर समाधि धरे निरुपाधि, कौत पखान निपाइ ॥ न० ॥५॥
॥ ढाल २ जी॥ राग श्राशावरी॥ ॥ श्राशा रनकी क्या कीजे ॥ ए देशी ॥ ॥सूरिराय मान्या ए मुनि मन मांदि।मा०॥पंचाचार शुचि पाले पलावे,(शुक)मारग नविने दिखाय ॥सूजाचो प्रेम धरी पद पूजो,बत्रीशगुणी गणि राय ॥सू०॥१॥जुगप्रधान जग बोधन मोहन, क्रोधवश दणहुं न थाय ॥ सू॥सावधान चुंपे करी वंदो,प्रमाद पंच न दिखाय॥सू॥॥धर्मोपदेशेनथालस रेष,वर्जी विकथा कषाय॥सूते श्राचारज नमीए नेहे,अकलुष श्रमल अमाय ॥ सू॥३॥जे करे सारण वारण चोयण, पडिचोयण हित लाय॥सू॥पटधारी गलथंन श्राचारज,ते विन केम रहेवाय ॥सू॥४॥श्राथमीए जिन सूरज केवल,जगदीपक चित्त लाय॥सू॥जुवन पदारथ प्रगटन समरथ, चिरंजीव शासनराय॥सू॥५॥
॥ ढाल ३ जी॥ ॥ राग ॥ नाथ केसे गजको बंध बुमायो । ॥सुधीयसें श्राचारजपद ध्यावे, सूरिश्रातम अन्नेद
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