________________
श्रीगंजीरविजयकृत नवपदपूजा. एy वचने,अहित ताप सवि टालनहार ॥
पाते उवकाय नमीजे जे फुनि, जिनमत तीव्र दीपावनहार॥पा॥५॥
॥ ढाल ३ जी ॥ राग कालींगमो त्रिताल ॥ ॥ बंसीया रे केसे बजारघुवीर ॥ ए देशी॥
॥ सुगतियां रे पावे वाचक ध्याधीर॥सु॥जेसे सकाय तप रति नितु कीनी, जिनमत रसे रंग्या हीर ॥ सु० ॥१॥ ज्युं जगबंधु जगजीवन पालक, ध्यातां ध्यानी वाचक वीर॥सु०॥वीर वचनरस पीए जस वृद्धि, सविनय सिक गंनीर ॥ सु० ॥ २॥ ॥काव्य तथा मंत्र बोलवां ॥इति उपाध्यायपदपूजा॥ ॥ श्रथ साधुपदपूजा ५ मी॥
॥ दोहा ॥ ॥सिक संजम रस जस हठ, नमीए ते अणगार ॥ दमण दमन दया नौ बले, उतरे नवनिधि पार॥१॥ सूरि वाचक गणि सेवना, करवा जे उजमाल ॥ तस वर्णव केम करी शकुं, उज्ज्वल गुण मणिमाल ॥२॥ समिति पंच समिते सदा, गुप्त त्रिगुप्ते सदैव॥ लोग पिपासा (खेप)तजी बहि, अंतर ग्रंथि नजेव ॥३॥ मुक्ति योग चरणे करी, रमे योग अष्टांगते मुनि नमतां कीजीए, पाप करमदल जंग ॥४॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org