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विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम.
॥ यजो० ॥ १ ॥ दिव्य उदारिक कर करावण, अनुमति तास तजंत ॥ मन वच काए नव डुग काम, वराहु दशा वरजंत ॥ यजो० ॥ २ ॥ सुर नर किन्नर हरि धाता हर, कामकी प्राण धरंत ॥ त्रिशलानंदन दमीए बीनमें, निज देशी करंत ॥ यजो० ॥ ३ ॥ कुलमल कर्म कलंक पखालन, जलधर ब्रह्म महंत ॥ खेद हरण जव तरण दरी सम, पातीह बोध करंत ॥ यजो० ॥ ४ ॥ अनुजव चूरण वंबित पूरण, शिवपंथ विघ्न हरंत ॥ सुर करे सानिध्य कींकरी लबी, आप दर मज संत ॥ यजो० ॥ ५ ॥ प्रभु पालित नवविधसें पालो, डुरित हर जगवंत ॥ बुद्धि सिद्धि सवीन्न दाइ, गंजीर बोध तरंत ॥ यजो० ॥ ६ ॥ सकल० ॥ ॐ० ॥ ॥
॥ अथ दशमी पूजा || ॥ दोहा ॥
॥ किंचन घरी ब्रह्म षवे, होय न पूरण ब्रह्म ॥ पूरण ब्रह्म प्रभु नित धरे, अकिंचन धर्म न ॥ १ ॥ ॥ राग कीफोटी ठुमरी ॥ चलत पवन सुरही अंगना ॥ ए देशी ॥ ॥ सजन किंचनको बोरनकुं, जो श्री जिनवर
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