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श्रीगंजीरविजयकृत दशविध यतिधर्मपूजा ३०३ स्वनाव उजली ॥ चारोही श्रदत्त बोर, विरति हे करमली ॥ दिन० ॥ ४ ॥ जीव कुंद केतकी, गुलाब ने वोलसली || फुल्ल स्वामी मालीकी, न लेना जग कली ॥ दिन० ॥ ५ ॥ अरिहंत प्रसिद्ध फुल, बेदो ना कली ॥ प्रियंगु चंपो मोगरो, ने मालती जली ॥ दिन० ॥ ६ ॥ गुरु उक्त रीत पद्म, जुश्वी जली ॥ परिमले सुवर्णके, सुनोमीजा वली ॥ दिन० ॥ ७ ॥ फुलोकी जाति जाति, अंगी जली जली ॥ पगर जरो वर्षो जवि, फुल देव जो मीली ॥ दिन० ॥ ८ ॥ द्विविध लेप देप बेद, वीर नहीं बली ॥ वृद्धि गंजीर शौच धीर, कीर्त्ति उजली || दिन० ॥ ए ॥ सकल० ॥ ॐ ॥ ८ ॥
॥ अथ नवमी पूजा ॥ ॥ दोहा ॥
॥ ब्रह्म विना शुचिता कीसी, इम जाणी जगदीश ॥ ब्रह्म हेतुशुं ब्रह्मने, अंगे धरे निशदिस ॥ १ ॥ ॥ राग नेरवी ॥ तजो मन रे, कुमत कुटिलकी संग ॥ ए देश ॥
॥ यजो जवि रे, ब्रह्मवृत्ति अवतंस ॥ यजो० ॥ ए कणी ॥ पूरण ब्रह्म ब्रह्म निवासी, समर समर अरिहंत
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