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________________ ३२ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. विरुङ हित रे॥मोरी॥५॥रागाकुलमें वेष न बोले, नहीं विकथ न जीत रे ॥ भोरी० ॥६॥ स्फुट मधुर उदार चातुरी, प्रश्नोत्तर शुज रीत रे॥मोरी॥७॥ चपल विन्यास ने निंदाकारी, सत्य जगतनो मित रे ॥ मोरी० ॥ ॥ ग्राम हास्य पैशुन्य तजीने, सत्य सुधाम चित्त रे ॥ मोरी० ॥ ए ॥ धर्म वृद्धि जिन वीर गंजीर ते, अमित दीए प्रीत रे ॥ मोरी० ॥ १० ॥ सकल ॥ 5 ॥७॥ ॥अथ अष्टमी पूजा ॥ ॥दोहा॥ ॥ शौच विना किम उजलो, सत्य दुवे निरधार ॥ शौच रयण तिणे जाणीने, श्रादरे जगदाधार ॥१॥ ॥राग गजल ॥ टुंक दिलगी चमस खोल ॥ए देशी॥ ॥दिन रात आप जापसे, विनावको उली ॥ दिल बागके मेदान जगे, वासना कली ॥ दिन०॥१॥ सुरिंद वृंदवृंदकी, उपासना मली ॥ जलादि शौच एक लोन, मुक्ति कंदली ॥ दिन ॥२॥ जिनींद वाक पाकता, उदार सांजली ॥ स्पर्श तज अदत्तको, विजावकी मली ॥ दिन० ॥ ३॥संताप हार तीरणी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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