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श्रीगंजीरविजयकृत दशविध यतिधर्मपूजा. ३७५ गुणी खाण रे॥सजन ॥ ए श्रांकणी ॥ किंचन संचित ना करो रे, निग्रंथ थवर्धमान रे॥श्यामूळ त्यागीने प्रनु, पाम्या सवि कल्याण रे ॥ सजन ॥१॥ किंचन संचन जिन कहे रे, सरिंज निदान रे ॥ जग जग प्रियन तिहां लगे सवि, गामीन दंशण झान रे ॥ सजन ॥२॥ आप तरे ने परने तारे, गुणरसीआ एक तान रे ॥ सचित्त श्रचित्त शब्दादि विषये, लोपाए न महान रे ॥ सजन॥३॥ दशही धर्मे पूरण जिनजी, कल्पसूत्रनी वाण रे॥पूरण फरसे तेहीज ते जव, पामे पद निर्वाण रे॥सजन ॥४॥ श्राप सरूपी आतमरामी, केवल रतन निधान रे॥ जोग निरुंधी निरजर सुखमय, एक समयमें विधान रे ॥ सजन ॥५॥ अनंत चतुष्टय अदय थिति जुग, समय वेदी नगवान रे ॥ उत्पाद व्यय ध्रुव संगी श्ररूपी, चिदानंद मंडाण रे । सजन ॥६॥सुता जागता नित नित समरो, ध्यावो ज्योति समान रे॥ रिकि वृद्धि मंगलमाला, गंजीर महोदय गण रे ॥ सजन ॥ ७॥ सकल ॥ 5 ॥ १० ॥
वि० २५ . Jain Educationa International
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