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श्रीगंजीरविजयकृत दशविध यतिधर्मपूजा. ३७ दपकश्रेणी अनुकूल पवनसें, केवल लही जय शिव वसीश्रा ॥ संतोष ॥६॥ मुक्ति नजी लहो मुक्ति मुल्लारी,ममता तज समता सजीथा॥संतोष०॥७॥ हित वृद्धि कर वीर सुनोजी, गंजीर दीसी दी अगरसीया ॥ संतोष ॥ ७ ॥ सकल ॥०॥४॥
॥अथ पंचम पूजा ॥
॥ दोहा॥ ॥ लोन अधिक जग देहनो, लोजर्नु मूल शरीर ॥ निलौंजी प्रनु तप तपे, बाले कर्मनो हीर ॥१॥ ॥ राग देश तुमरी ॥ कुमतिको बोरके, मोए सुमति
सुहावे रे ॥ ए देशी ॥ ॥ तन ने धन कारमा, तपे क्युं न रुचि सो रे॥ तन ने धन कारमा ॥ ए आंकणी ॥तन धन सुंदर धन मीले तपथी, तप विना नव जमशो रे ॥ तन ॥१॥ अरिहंतपद प्रनु तप फल जाणी, तप करत उकरीशो रे ॥ तन ॥२॥श्वा रंधन तप कर निश्चे, बही अंतर सरीसो रे ॥ तन०॥३॥ बेश्रासन तिविहार न करता, करो नहीं उपवासो रे ॥ तन० ॥४॥ तप लघु बह प्रज्जु गुरु बमासी, विचर्या बार
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