SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 386
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७७ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥ शिवरमणीकी सेजमें, करो सेल अपारा॥आर्जव० ॥६॥ कर जोरी करुं विनति, दीजे दरिशन प्यारा ॥ बुद्धि करण वर्धमानसें, सुख गंजीर हजारा ॥ आर्जव ॥ ७॥ सकल ॥ ॐ ॥३॥ ॥ अथ चतुर्थ पूजा॥ ॥दोहा॥ ॥माया विन उत्तम रुजु,लोज नीच करे फंद ॥ लोन कीचम शोषण जणी, जजीए सविता जिणंद ॥१॥ ॥ राग तुमरी ॥ चालो सखी सब देखनकुं, रथ चमी जनंदन श्रावत हे ॥ ए देशी ॥ ॥संतोष अमृत सुनोगी प्रजुको,पूजो नवियण शिवरसीया।संतोष॥ए श्रांकणी ॥संतोष विन नहु आवे तृपति, पुद्गल रासी सवि ग्रसी ॥ संतोष॥१॥ त्रिजुवन केली तृष्णा वेली, मूल चुल तस रस कसीथा ॥ संतोष ॥२॥ मुक्ति यावन पावन नावन, निःस्पृह नावित अहोनीसीआ ॥ संतोष ॥३॥ लोज पयोधि मनोरथ पवने, ऊर्मि उगलत धसमसीआ ॥ संतोष ॥४॥ मुक्ति तरा विन केसे तराए, श्रात्मरसे प्रनु अनुसरीश्रा ॥ संतोष०॥५॥ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy