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________________ ३० विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. वरसो रे॥तन॥५॥घाती वीण वरे केवल कमला, करे समय विलासो रे ॥ तन० ॥६॥गया गइरह श्रा वीर करणी, पर्यय ऽव्य सार्योसो रे ॥ तन ॥७॥ अस्ति धर्मादि उपदेशी, संशय विनाशो रे ॥ तन०॥॥समवसरण वासव मील पूजे, जलपुष्प पगर सो रे॥तनावृषिविजय कर त्रिशलानंदन, गंजीरने उधरशो रे॥ तन०॥१०॥सकल ॥०॥५॥ . ॥ अथ ही पूजा॥ ॥दोहा॥ ॥ तप असंयतपणे करे, निरनुबंधन थाय ॥ संयमयुत निरबंधी जिन, संजमस्युं चित्त लाय ॥१॥ ॥राग दादरो ॥ ॥ सजी संजममें, रमण करे ज्ञानी रे ॥ सजी संजममें ॥ ए श्रांकणी ॥ कर्मजनित जव कर्म ने बंधे, धरे बंधहर जाणी रे ॥ सजी० ॥१॥ करी करी जतना मन वच अपना, संजम रस गणी रे॥ सजी०॥२॥नुवि जल अनला अनिल वन विगला, पणिं दि जीव जाणी रे॥ सजी० ॥३॥ अजीवन उपधि पुस्तक पागं, जतन करो गुणखाणी रे॥ सजी० ॥४॥ पेख जवेख देख पमझन, मनोवृत्ति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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