SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६५ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥ध्रुवपदं ॥ काफीरागण गीयते ॥ ॥दीप प्रगट कर लीजे, जिणंदमुख ॥ दीप प्रगट कर लीजे॥ए श्रांकणी॥जिनपति सन्मुख दीपग्रहीने,प्रा. स्म प्रकाशक कीजे॥जि०॥दी० ॥१॥ मिथ्यात तिमिर रह्यो घट अंतर, ताकुंज्योति धरीजे॥ज्ञानदशा प्रगटे चित्त अंतर, चिदानंदघन रीजे॥जिगादी॥॥जव्यदीप दया करी फानस,अनुकंपा करी लीजे॥जीवदया कारण करी करुणा,एहविध जक्ति करीजे॥जिादी० ॥३॥ एहविध दीपकपूजा कीजे, तत्त्व ते नव ग्रहीजे॥ नव ग्रैवेयके श्रात्म प्रकाशे,काल अनादि बीजे॥जिए ॥ दी ॥४॥ इति नवम दीपकपूजा समाप्ता॥॥ ॥अथ दशम धूपपूजा प्रारंजः॥ ॥दोहा॥ ॥ कर्मदहनने कारणे, ध्यानानल करी जेह॥ अव्यधूपपूजा करी, निर्मल करी निज देह ॥१॥ ॥ ध्रुवपदं ॥ पूर्वीरागण गीयते ॥ ॥धूप प्रगट करी लीजे, नविकजन धूप प्रगट करी लीजे ॥ सुरपति धूप ग्रही जिन बागल, कृष्णागरु माहे दीजे ॥३०॥५०॥१॥ए आंकणी॥कुंदरू Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy