________________
श्रीदेव विजयजीकृत अष्टप्रकारी पूजा. ३५३ घर आवे रे ॥ एणी परे श्रष्ट प्रकार, पूजा करशे रे ॥ नृप हरिचंड परे तेह, जवजल तरशे रे ॥६॥ काव्यं ॥ सकलचेतनजीवितदायिनी, विमलनक्तिविशुछिसमन्विता ॥ जगवतः स्तुतिसारसुखासिका, श्रमहरा महरास्तु विजोः पुरः ॥ इत्यष्टम नैवेद्यपूजा समाप्ता ॥७॥ ॥ ढाल नवमी ॥ नमो नवि नावशु ए ॥ए देशी॥
॥ अष्टप्रकारी चित्त नावीए ए, श्राणी हर्ष श्रपार ॥ नविजन सेवीए ए॥ अष्ट महासिकि संपजे ए, अम्बुझि दातार ॥ नवि० ॥१॥अमदिहि पण पामीए ए, पूजथी नवि श्रीकार ॥ न० ॥ अनुक्रमे अष्ट करम हणी ए, पंचमी गति लहो सार ॥ न ॥२॥ शा न्हाना सुत सुंदरु ए, विनयादिक गुणवंत ॥ ज० ॥ शाह जीवणना कहेणथी ए, कीयो अन्यास ए संत ॥ न०॥३॥ सकल पंमित शिरसेहरो ए, श्रीविनीतविजय गुरुराय॥ज॥ तास चरणसेवा थकी ए, देवनां वंबित थाय ॥०॥४॥ शशी नयन गज विधु वरु ए, (१४२१) नाम संवत्सर जाण ॥०॥ तृतीया सित शो तणी ए, शुकरवार
वि.२३ Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org