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३५४ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. प्रमाण ॥ न० ॥५॥पादरा नगर विराजता ए, श्रीसंजव सुखकार ॥ न० ॥ तास पसायथी ए रची एं, पूजा अष्ट प्रकार ॥ ज० ॥६॥
॥ कलश ॥ ॥ इह जगत्स्वामी मोहवामी, मोक्षगामी सुखकरू॥प्रनु अकल श्रमल अखंम निर्मल, नव्य मिथ्या तम हरू ॥ देवाधिदेवा चरणसेवा, नित्यमेवा थापीए॥निज दास जाणी दया आणी, आप समोवम थापीए ॥१॥ श्लोक ॥ इति जिनवरदं, शुद्धजावेनकीर्ति,-विमल मिह जगत्यां, पूजयंत्यष्टधा ये ॥ निजकलिमलहेतोः, कर्मणोऽतं विधाय, परमगुणमयं ते, यांति मोदं हि वीराः ॥ १॥ शनि अष्टप्रकारी पूजा संपूर्णा ॥
॥ इति श्रीदेव विजयजीकृता अष्ट
प्रकारी पूजा संपूर्णा ॥
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