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________________ ३५५ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥ ढाल आठमी ॥ श्रावण मासे स्वामी, मेहेली चाल्या रे ॥ ए देशी ॥ ॥ हवे नैवेद्य रसाल, प्रनुजी आगे रे ॥ धरतां जवि सुखकार, प्रजुता जागे रे ॥ कंचन जमित उदार, थालमां लावो रे ॥ तार तार मुज तार, नावन जावो रे ॥१॥ लापसी सेव कंसार, लामु ताजा रे॥ मनोहर मोतीचूर, खुरमा खाजां रे॥ बरफी पेंडा खीर, घेवर घारी रे ॥ साटा सांकली सार, पूरी खारी रे ॥२॥ कसमसीया कूलेर, सकरपारा रे ॥ लाखणसाइरसाल, धरो मनोहारा रे॥मोतैया कलि. सार, आगे धरीए रे ॥ नव जव संचित पाप, दणमां हरीए रे॥३॥ मुरकी मेसुर दहींथरां, वरसोला रे ॥ पापम पूरी खास, दोगं घोला रे ॥गुंदवमां ने रेवमी, मन नावे रे॥ फेणी जलेबी मांहे. सरस सोहावे रे ॥४॥ शालि दाल ने सालणां, मनरंगे रे ॥ विविध जाति पकवान, ढोवो चंगे रे ॥ ताल कंसाल मृदंग, वीणा वाजे रे ॥ नेरी नफेरी चंग, मधुर ध्वनि गाजे रे ॥५॥ सोल सजी शणगार, गोरी गावे रे ॥ देतां अढलक दान, जिन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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