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________________ श्रीदेवविजयजीकृत अष्टप्रकारी पूजा. ३५१ प्रा० ॥ पीस्तां फनस नारंग, पूंगी चूअफल घj चंग हो ॥प्राण ॥२॥ खरबूज जाख अंजीर, अन्नास रायण जंबीर हो ॥ प्राण ॥ मिष्ट लींबु ने अंगुर, शिंगोमां टेटी बीजपूर हो॥प्रा०॥३॥ एम जे जे विषय लहंत, ते ते जिनजुवने ढोयंत हो ॥ प्रा० ॥ अनुपम थाल विशाल, तेहमां जरीने सुरसाल हो ॥ प्राण ॥४॥फलपूजा करे जे नावे, ते शिवरमणी सुख पावे हो॥प्रा०॥र्गता नारी जेम, लहे कीरयुगल वली तेम हो॥प्रा॥५॥ काव्यं ॥श्रमलशांतिरसैकनिधि शुचिं, गुणफलैर्मलदोषहरैर्हरं ॥ परमशुद्धिफलाय यजे जिनं, परहितं रहितं परनावतः ॥१॥ इति सप्तम फलपूजा समाप्ता ॥ ७॥ ॥ अथाष्टम नैवेद्यपूजा प्रारंजः ॥ - ॥ दोहा॥ ॥जवदव दहन निवारवा, जलदघटा सम जेह ॥ जिनपूजा युगते करी, त्रिविधे कीजे तेह ॥१॥ पूजा कुगतिनीअर्गला, पुण्य सरोवर पाल ॥ शिवगतिनी साहेलडी, आपे मंगलमाल ॥२॥ शुन नवेद्य शुल नावगुं, जिन आगे धरे जेह ॥सुर नर शिवपद सुख लहे, हलीय पुरुष परे तेह ॥ ३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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