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श्रीदेव विजयजीकृत अष्टप्रकारी पूजा. ३४ए ॥अथ षष्ठादतपूजा प्रारंजः ॥
॥दोहा॥ ॥ सम कितने अजुश्रालवा, उत्तम एह उपाय ॥ पूजाथी तुमे प्रीब्जो, मन वंबित सुख थाय ॥१॥ अदत शुरू अखंडणुं, जे पूजे जिनचंद ॥ लहे अखंमित तेह नर, अदय सुख आणंद ॥२॥ ॥ ढाल नही॥ धर्मजिणंद दयालजी, धर्म तणो
दाता ॥ ए देशी ॥ ॥ अदतपूजा नविकीजे जी,अदत फल दाता ॥शालि गोधूम पण लीजे जी॥०॥ प्रनु सन्मुख स्वस्तिक कीजे जी॥०॥मुक्ताफल विचमे दीजे जी ॥अ॥१॥एहवा उज्ज्व ल अदत वास। जा॥ ॥ शुन तंकुल वासे उबासी जी ॥ अ० ॥चूरक चत. गति चित्त चोखे जी॥१०॥पूरी श्रदय सुख लहो जोखे जी ॥ १० ॥२॥ पुनरावर्त्त हरवा हाथे जी ॥ श्र० ॥ नंदावर्त्त करो रंग साथे जी ॥ अ० ॥ कर जोमी जिनमुख रहीने जी॥०॥एम आखो शिव दीयो वहीने जी ॥ अ० ॥३॥ जगनायक जगगुरु जेता जी॥०॥ जगबंधु अमल विजु नेताजी॥१॥
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