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विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम.
निव दीपक ए प्रभु, पूजी मागो देव ॥ ज्ञान तिमिर जे अनादिनुं, टालो देवाधिदेव ॥ २॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ कुमखमानी देशी ॥ | जावदीपक प्रभु खागले, द्रव्यदीपक उत्साहे ॥ जिनेसर पूजीए ॥ प्रगट करी परमातमा, रूप जावो मन मांहे ॥ जि० ॥ १ ॥ धूम कषाय न जेहमां, न बीपे पतंगने हेज ॥ जि० ॥ चरण चित्रामण नवि चले, सर्व तेजनुं तेज ॥ जि० ॥ २ ॥ अधन करे जे आधारने, समीर तो नहीं गम्य ॥ जि० ॥ चंचल जाव जे नविलहे, नित्य रहे वली रम्य ॥ जि० ॥ ३ ॥ तैल प्रदेष जिहां नहीं, शुद्ध दशा नहीं दाह || जि० ॥ अपर दीपक ए अरचतां, प्रगटे प्रशम प्रवाह || जि० ॥ ४ ॥ जेम जिनमती ने धनसिरि, दीप पूजनथी दोय ॥ जि० ॥ श्रमरगति सुख अनुभवी, शिवपुर पोहोती सोय ॥ जि० ॥ ५ ॥ काव्यं ॥ बहुलमोहत मिस्र निवारकं, खपरवस्तुविकासनमात्मनः ॥ विमलबोधसुदीपकमादधे, भुवनपावनपारगतायतः ॥ १ ॥ इति पंचम दीपकपूजा समाप्ता ॥ ५ ॥
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