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________________ श्रीदेव विजयजीकृत अष्टप्रकारी पूजा. ३४३ ने हांरे जिनमंदिर रलियामणुं रे ॥ ए देशी ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ ॥ छने हांरे न्हवण करो जिनराजने रे, ए तो शुद्धावन देव ॥ परमातम परमेसरू रे, जसु सुर नर सारे सेव ॥ न्ह० ॥ १ ॥ ० ॥ मागध तीर्थ प्रजासनां रे, सुरनदी सिंधुनां लेव ॥ वरदाम दीरसमुद्रनां रे, नीरे न्हवे जेम देव ॥ न्ह० ॥ २ ॥ श्र० ॥ तेम जवि जावे तीर्थोदके रे, वासो वास सुवास ॥ औषधी पण जेली करो रे, अनेक सुगंधित खास ॥ ० ॥ ३ ॥ ० ॥ काल अनादि मल टालवा रे, जालवा आतमरूप ॥ जलपूजा युक्त करी रे, पूजो श्री जिननूप ॥ न्ह० ॥ ४ ॥ ० ॥ विप्रवधू जलपूजयी रे, जेम पामी सुख सार ॥ तेम तमे देवाधिदेवने रे, अर्ची लहो जवपार ॥ न्ह० ॥ ५॥ ॥ श्रथ काव्यं ॥ विमल केवलदर्शनसंयुतं, सकलजंतुमहोदयकारणं ॥ खगुणशुद्धिकृते स्त्रपयाम्यहं, जिनवरं नवरंगमयांजसा ॥ १ ॥ इति प्रथम जलपूजा समाप्ता ॥ १॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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