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३४५ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम.
॥ अथ श्रीदेवविजयजीकृत अष्टप्रकारी पूजा प्रारंजः ॥
॥ तत्र ॥ ॥ प्रथम न्दवणपूजा प्रारंजः ॥
॥दोहा॥ ॥ अजर अमर निकलंक जे, अगम्य रूप अनंत ॥ अलख अगोचर नित्य नमुं, परम प्रस्तावंत ॥१॥श्री संजव जिन गुणनिधि, त्रिभुवन जन हितकार ॥ तेहना पद प्रणमी करी, कहीशुं अष्ट प्रकार ॥२॥प्रथम न्हवणपूजा करो, बीजी चंदन सार॥ त्रीजी कुसुम वली धूपनी,पंचम दीप मनोहार ॥३॥ अदत फल नैवेद्यनी, पूजा अतिहि उदार॥जे नवियण नित नित करे, ते पामे नवपार ॥ ४॥ रतन जमित कलशे करी, न्हवण करो जिननूप॥ पातकपंक पखालतां, प्रगटे श्रात्मस्वरूप ॥ ५॥ अव्य नाव दोय पूजना, कारण कार्य संबंध ॥ नावस्तव पुष्टि जणी, रचना अव्य प्रबंध ॥६॥ शुज सिंहासन मांमीने, प्रनु पधरावो जक्त ॥पंच शब्द वाजि. त्रशुं, पूजा करीए व्यक्त ॥ ७॥
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