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________________ श्रीयशोविजयजीकृत नवपदपूजा. ३३३ नेदता ॥ सविकल्प ने अविकल्प वस्तु, सकल संशय बेदता ॥२॥ ॥पूजा ॥ ढाल ॥श्रीपालना रासनी॥ ॥जदाजद न जे विण लहीए, पेय अपेय विचार ॥ कृत्य अकृत्य न जे विण लहीए, ज्ञान ते सकल आधार रे ॥ न ॥ सि ॥३१॥प्रथम ज्ञान ने पठी अहिंसा, श्रीसिद्धांते नाख्युं ॥ ज्ञानने वंदो ज्ञान म निंदो, ज्ञानीए शिवसुख चाख्युं रे ॥ न॥ सि० ॥ ३२ ॥ सकल क्रियानुं मूल ते श्रझा, तेहy मूल जे कहीए ॥ तेह ज्ञान नित नित वंदीजे, ते विण कहो केम रहीए रे॥न॥ सि०॥३३॥पंच ज्ञान मांहि जेह सदागम, स्वपर प्रकाशक जेह ॥ दीपक परे त्रिजुवन उपकारी, वली जेम रवि शशी मेह रे ॥न॥ सि ॥ ३४ ॥ लोक ऊर्ध्व अधो तिर्यग् ज्योतिष, वैमानिक ने सिझ॥ लोकालोक प्रगट सवि जेहथी, ते झाने मुज शुरू रे ॥०॥ सि॥३५॥ ॥ढाल ॥ ॥झानावरणी जे कर्म ,दय उपशम तस थाय रे॥ तो हुए एहीजातमा, ज्ञान अबोधता जाय रे॥वी ॥ ॥ति सप्तम सम्यग्ज्ञानपदपूजा समाप्ता॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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