SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 342
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३४ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥अथ अष्टम चारित्रपदपूजा प्रारंनः॥ ॥ काव्यं ॥ अवज्रावृत्तम् ॥ ॥ आराहिअखंडीअ सकिस्स ॥ ॥णमो णमो संजमवीरिअस्स ॥ ॥ जुजंगप्रयातवृत्तम् ॥ ॥ वली कानफल चरण धरीए सरंगे. निराशंसता हाररोधप्रसंगे॥ नवांनोधिसंतारणे यान तुल्यं, धरं तेह चारित्र अप्राप्तमूल्यं ॥१॥ होये जास महिमा थकी रंक राजा, वली छादशांगी जणी होय ताजा ॥ वली पापरूपोपि निःपाप थाय, थ सिद्ध ते कर्मने पार जाय ॥२॥ ॥ ढाल ॥ उलालानी देशी ॥ ॥ चारित्रगुण वली वली नमो, तत्वरमण जसु मूलो जी ॥ पररमणीयपणुं टले, सकल सिक अनुकूलो जी ॥१॥ उलालो ॥ प्रतिकूल थाश्रवत्याग संयम, तत्व थिरता दममयी ॥ शुचि परम खंति मुत्ति दश पद, पंच संवर उपचई॥ सामायिकादिक नेद धर्मे, यथाख्याते पूर्णता ॥ अकषाय अकलुष अमल उज्ज्वल, कामकश्मलचूर्णता ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy