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________________ २६ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम जानु करे, अंस शिर जाल गले, कंठ हृदि उदर जिन, दीजीए ए ॥ देवना देवनुं, गात्र विलेपतां, हर प्रभु पुरित, कही लीजीए ए ॥ २ ॥ ॥ गीत ॥ राग टोमी अथवा वैरामी ॥ ॥ तिलक करो प्रभु नव अंगे, कुंकुम चंदन घसी शुचि घनसार ॥ प्रभु पगे जानु कर अंस शिर जाल, गल कंठ हृदि उदरे चार ॥ अहो जाल गल कंठ हृदि उदरे चार, स्वयं पूजाकार ॥ तिलक० ॥ १॥ करीय यक्ष कर्दम अगर चुd मर्दन, लेपो मेरे जगगुरु गात ॥ हरि जिम मेरुपर रुषनकी पूजा करी, देखावती कौतुक र्डर और जाति ॥ तिलक० ॥ २ ॥ हमे तुम तन लींप्यो, तोजी नाव नांही टीप्यो, देखो प्रजुविलेपन की बात ॥ हरीयो हम ताप, ए डूजी पूजा विलेपनकी, दरो डुरितकुं शुचि कीनो गात ॥ तिलक० ॥ ३ ॥ इति द्वितीय चंदन विलेपनपूजा समाप्ता ॥ २ ॥ ॥ तृतीय चक्षुयुगलपूजा प्रारंभः ॥ || रामग्रीरागेण गीयते ॥ ॥ तिमिर संकोचनां, रयणनां लोचनां, एम कही जिन मुखे विक थाप ॥ केवलज्ञान ने केवलदर्शन, लोचन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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