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श्रीसकलचंदजी उपाध्यायकृत सत्तरनेदी पूजा. १७ दोय हम, देव श्रापो॥१॥ अहव पाठंतरे त्रीजीय पूजामा, जुवन वैरोचन जिनप आगे॥देव चीवर समुं वस्त्र युग पूजतां, सकल सुख स्वामीनी,लील मागे॥२॥
॥ गीत ॥ राग अधरस ॥ ॥ रयण नयण करी दोय ले के, मेरे प्रमुख दीजे ॥ केवलज्ञान ने केवलदर्शन, हम पर कृपा कर प्रसाद कीजे ॥रयण ॥९॥ देवष्य सम वस्त्र जोक अहवा, त्रीजी पूजा कीजे ॥ उपशम रस नरी नयण कटोरडे, देखी देखी प्रमुख दीजे ॥ रयण ॥२॥इति तृतीय चनुयुगलपूजा, तथा वस्त्रयुगल देवष्य वस्त्र, अंगलहणां बे पूजा समाता ॥
॥ चतुर्थ वासपूजा प्रारंजः ॥
॥रामग्रीरागण गीयते ॥ ॥नंदन वन तणां, बावना चंदनां, वासविधि चूरण विरचीयां ए॥ जा मंदारशें, शुद्ध घनसारशु, सुरनि सम कुसुमशु, चरचीयां ए॥ १ ॥ चनश्रीय पूजमां, सुगंध वासे करी, जे जिन सुरपते, अरचीया ए॥प्रनु तणे अंग, मनरंग नरी पूजतां, श्राज उच्चाट सवि, खरचीया ए॥२॥
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