SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सकलचंदजी उपान्चायकृत सत्तरनेदी पूजा. १५ तो, मार्जतीशं ॥ दिवि यथैद्रादिकस्तीर्थगंधोदके, स्नपयति श्रावको तिम जिनेशं ॥ २ ॥ ॥ गीत ॥ राग अडालो, मलार ॥ केदार मिश्रित ॥ ॥ जवि तुम देखो, अब तुम देखो, सत्तर नेद जिन नक्ति ॥ अंग उपंग कही जिन गणधर, कुगति हरी दे मुक्ति || जवि तुम० ॥ १ ॥ शुचि तनु धोती धरी गंगोदक, जरी मणि ( कनक ) नी कलशालि ॥ जिन दीवे नमी पूजी पखाली, दे निज पातक गाली ॥ जवि तुम० ॥ २ ॥ समकित शुद्ध करी दुःखहरणी, विरताविरति करणी ॥ योगीसर पण ध्याने समरी, जवसमुद्रकी तरणी ॥ जवि तुम० ॥ ३ ॥ देखावती नहीं कबहुं वैतरणी, कुमतिकुं रविजरणी ॥ सकल मुनी सरकुं शुभ लहरी, शिवमंदिर नीसरणी ॥ नवि तुम० ॥ ४ ॥ इति प्रथम न्हवणपूजा समाप्ता ॥ १ ॥ ॥ द्वितीय चंदन विलेपनपूजा प्रारंभः ॥ ॥ ढाल जयमलानी | रामग्रीरागेण गीयते ॥ ॥ बावना चंदना, सरस गोसीसमा, घसीय घन सारशुं कुंकुमा ए ॥ कनक मणि जाजनां, सुरनि रस पूर्वीयां, तिलक- नव करो अंगमां ए ॥ १ ॥ चरण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy