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________________ श्रीयशोविजयजीकृत नवपदपूजा. ३३१ परईहा टले ॥ निज शुद्ध सत्ता प्रगट अनुभव, करणरुचिता उबले ॥ बहुमान परिणति वस्तुतत्त्वे, अव तसु कारणपणे ॥ निज साध्यदृष्टे सर्व करणी, तत्त्वता संपत्ति गणे ॥ २ ॥ ॥ पूजा ॥ ढाल ॥ श्रीपालना रासनी ॥ ॥ शुद्ध देव गुरु धर्म परीक्षा, सदहणा परिणाम ॥ जेह पामीजे तेह नमीजे, सम्यग्दर्शन नाम रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ २६ ॥ मल उपशम दय उपशम हयथी, जे होय त्रिविध अनंग ॥ सम्यग्दर्शन तेह नमीजे, जिनधर्मे दृढ रंग रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ २७ ॥ पंच वार उपशमीय लहीजे, दय उपशमीय असंख ॥ एक वार कायिक ते समकित दर्शन नमीए असं रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ २८ ॥ जे विष नाण प्रमाण न होवे, चारित्रतरु नवि फलीयो ॥ सुख निर्वाण न जे विष लहीए, समकितदर्शन बलीयो रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ २५ ॥ समसठ बोले जे अलंकरीयुं, ज्ञान चारित्रनुं मूल ॥ समकितदर्शन ते नित्य प्रणमुं, शिवपंथनुं अनुकूल रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ ३० ॥ ॥ ढाल ॥ ॥ शम संवेगादिक गुणा, दय उपशम जे आवे For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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