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________________ ३३० विविध प्रजासंग्रह नाग प्रथम. ॥ ढाल ॥ ॥अप्रमत्ते जे नित्य रहे, नवि हरखे नवि शोचे रे॥ साधु सूधा ते आतमा, शुं मूंड्ये शुं लोचे रे ॥ वी० ॥६॥ इति पंचम मुनिपदपूजा समाप्ता ॥५॥ ॥ अथ षष्ठ सम्यक्त्वदर्शनपदपूजा प्रारंनः॥ ॥ काव्यं ॥ वज्रावृत्तम् ॥, ॥जिणुत्ततत्ते शश्लकणस्स ॥ ॥नमो नमो निम्मलदंसणस्स॥ ॥ जुजंगप्रयातवृत्तम् ॥ ॥ विपर्यास हरवासनारूप मिथ्या, टले जे अनादि अच्छे जेम पथ्या ॥ जिनोक्ते होये सहजयी श्रद्दधानं, कहीए दर्शनं तेह परमं निधानं ॥१॥ विना जेहथी ज्ञान अज्ञानरूपं, चरित्रं विचित्रं जवारण्यकूपं ॥ प्रकृति सातने उपशमे दय ते होवे, तिहां आपरूपे सदा आप जोवे ॥२॥ ॥ ढाल ॥ जलालानी देशी ॥ ॥ सम्यग्दर्शन गुण नमो, तत्व प्रतीत स्वरूपो जी ॥ जसु निरधार स्वजाव , चेतनगुण जे अरूपो जी॥१॥ उलालो॥जे अनुप श्रद्धा धर्म प्रगटे, सयल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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