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________________ श्रीयशोविजयजीकृत नवपदपूजा. ३२७ जी ॥ जवदवताप शमावता, श्रातमसाधन रंगी जी ॥ १ ॥ उलालो ॥ जे रम्या शुद्ध स्वरूप रमणे, देह निर्मम निर्मदा || काउस्सग्गमुद्रा धीर आसन, ध्यान न्यासी सदा ॥ तप तेज दीपे कर्म कीपे, नैव बीपे पर जणी ॥ मुनिराज करुणासिंधु त्रिभुवन, बंधु प्रणमुं हित जणी ॥ २ ॥ ॥ पूजा || ढाल ॥ श्रीपालना रासनी ॥ ॥ जेम तरुफूले नमरो बेसे, पीमा तस न उपावे ॥ लेइ रसने यातम संतोषे, तेम मुनि गोचर जावे रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ २१ ॥ पंच इंडियने जे नित्य कीपे, षट्कायक प्रतिपाल ॥ संयम सत्तर प्रकारे राधे, व तेह दयाल रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ २२ ॥ अढार सहस्स शीलांगना धोरी, अचल आचार चरित्र ॥ मुनि महंत जयणा युत वंदी, कीजे जनम पवित्र रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ २३ ॥ नवविध ब्रह्मगुप्त जे पाले, बारसविह तप शूरा ॥ एहवा मुनि नमी ए जो प्रगटे, पूरव पुण्य अंकुरा रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ २४ ॥ सोना ती परे परीक्षा दीसे, दिन दिन चढते वाने || संजम खप करता मुनि नमीए, देश काल अनुमाने रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ २५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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