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विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम.
ताप सविटाले ॥ ते उवकाय नमीजे जे वली, जिनशासन अजुवाले रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ २० ॥
॥ ढाल ॥
॥ तप सजाये रत सदा, द्वादश अंगनो ध्याता रे ॥ उपाध्याय ते यातमा, जगबंधव जगचाता रे ॥ वी० ॥ ५ ॥ इति चतुर्थ उपाध्याय पदपूजा समाप्ता ॥ ४ ॥ ॥ अथ पंचम मुनिपदपूजा प्रारंभः ॥ ॥ काव्यं ॥ इंद्रवज्रावृत्तम् ॥ ॥ साहू संसदिय संजमाणं ॥ ॥ नमो नमो सुइदयादमाणं ॥ ॥ जुजंगप्रयातवृत्तम् ॥
॥ करे सेवना सूरि वायग गणिनी, करुं वर्णना तेहनीशी मुणिनी ॥ समेता सदा पंचसमिति त्रिगुप्ता, त्रिगुप्ते नहीं कामजोगेषु लिप्ता ॥ १ ॥ वली बाह्य अन्यंतर ग्रंथि टली, होये मुक्तिने योग्य चारित्र पाली ॥ शुजाष्टांग योगे रमे चित्त वाली, नमुं साधुने तेह निज पाप टाली ॥ २ ॥
॥ ढाल ॥ उलालानी देशी ॥
॥ सकल विषय विष वारीने, निःकामी निःसंगी
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