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________________ श्री यशोविजयजीकृत नवपदपूजा ॥ ढाल || उलालानी देशी ॥ ॥ खंतिजुआ मुत्तिजुआ, श्रव मद्दव जुत्ता जी ॥ सच्चं सोयं किंचणा, तव संजम गुणरत्ता जी ॥ १ ॥ जलालो || जे रम्या ब्रह्मसुगुत्ति गुत्ता, समिति समिता श्रुतधरा ॥ स्याद्वादवादे तत्त्वत्वादक, आत्म पर विजजनकरा ॥ जवजीरु साधन धीरशासन, वहन धोरी मुनिवरा ॥ सिद्धांत वायण दान समरथ, नमो पाठक पदधरा ॥ २ ॥ ॥ पूजा ॥ ढाल ॥ श्रीपालना रासनी ॥ ॥ द्वादश अंग सजाय करे जे, पारग धारक तास ॥ सूत्र अर्थ विस्तार रसिक ते, नमो उवसाय उल्लास रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ १६ ॥ अर्थ सूत्रने दानविजागे, श्राचारज उवजाय ॥ जव त्रीजे जे लहे शिवसंपद्, नमीए ते सुपसाय रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ १७ ॥ मूरख शिष्य निपाई जे प्रभु, पाहाणने पल्लव आणे ॥ ते जवसाय सकल जन पूजित, सूत्र अर्थ सवि जाणे रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ १८ ॥ राजकुमर सरिखा गणचिंतक, आचारजपद योग ॥ जे जवकाय सदा ते नमतां, नावे जवजय शोग रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ १९ ॥ बावनाचंदनरस सम वयणे, हित For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International ३२७
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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