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________________ ३५४ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. शके कही पुरगुण, प्राकृत तेम गुण जास ॥ उपमा विण नाणी नव मांहे, ते सिक दीयो उदास रे ॥ न ॥ सि ॥ ए॥ ज्योतिरां ज्योति मली जस अनुपम, विरमी सकल उपाधि ॥ श्रातमराम रमापति समरो, ते सिक सहज समाधि रे ॥ न०॥ सि ॥१०॥ ॥ढाल ॥ ॥ रूपातीत स्वन्नाव जे, केवल दसण नाणी रे ॥ ते ध्यातां निज श्रातमा, होये सिक गुणखाणी रे ॥ वी०॥३॥इति द्वितीय सिहपदपूजा समाप्ता ॥२॥ ॥ अथ तृतीय आचार्यपदपूजा प्रारंजः ॥ ॥ काव्यं ॥ वज्रावृत्तम् ॥ ॥ सूरीणउरीकयकुग्गहाणं ॥ ॥ नमो नमो सूरसमप्पहाणं ॥ ॥ नुजंगप्रयातवृत्तम् ॥ ॥नमुं सूरिराजा सदा तत्वताजा, जिनेंद्रागमे प्रौढ साम्राज्यनाजा॥ षट्वर्गवर्गित गुणे शोजमाना, पंचाचारने पालवे सावधाना ॥१॥ नविप्राणीने देशना देश काले, सदा अप्रमत्ता यथा सूत्र श्राले ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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