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________________ ३५३ श्री यशोविजयजीकृत नवपदपूजा. त्रिजागोनदेहावगादात्मदेशा, रह्या ज्ञानमय जातवर्णादि लेशा ॥ सदानंद सौख्याश्रिता ज्योतिरूपा, अनाबाध पुनर्जवादि स्वरूपा ॥ २ ॥ ॥ ढाल ॥ उलालानी देशी ॥ ॥ सकल करममल दय करी, पूरण शुद्ध स्वरूपो जी ॥ श्रव्याबाध प्रभुतामयी, श्रतम संपत्तिनूपो जी ॥ १ ॥ जलालो || जेह नूप आतम सहज संपत्ति, शक्ति व्यक्तिपणे करी ॥ स्व द्रव्य क्षेत्र ख काल जावे, गुण अनंता आदरी ॥ सुखजाव गुण पर्याय परिणति, सिद्धसाधन पर जणी ॥ मुनिराज मानसहंस समवम, नमो सिद्ध महागुणी ॥ २ ॥ || पूजा ॥ ढाल || श्री पालना रासनी ॥ ॥ समय पर संतर अफरसी, चरम तिजाग विशेष ॥ अवगाहन लही जे शिव पहोता, सिद्ध नमो ते अशेष रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ ६ ॥ पूर्व प्रयोग ने गतिपरिणामे, बंधन बेद संग ॥ समय एक ऊर्ध्व गति जेहनी, ते सिद्ध प्रणमो रंग रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ ७ ॥ निर्मल सिद्ध शिलानी उपरे, जोयण एक लोकंत ॥ सादि अनंत तिहां स्थिति जेहनी, ते सिद्ध प्रणमो संत रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ ८ ॥ जाणे पण न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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