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________________ ३१२ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥ ३ ॥ महागोप महामाहण कहीए, निर्यामक सबवाह || उपमा एहवी जेहने बाजे, ते जिन नमीए उत्साह रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ ४ ॥ श्राव प्रातिहारज जस बाजे, पांत्रीश गुण युत वाणी ॥ जे प्रतिबोध करे जगजनने, ते जिन नमीए प्राणी रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ॥ ॥ अरिहंतपद ध्यातो थको, दवह गुण पकाय रे ॥ द बेद करी आतमा, अरिहंतरूपी थाय रे ॥ १ ॥ वीर जिनेसर उपदिशे, सांभलजो चित्त लाइ रे ॥ यात मध्याने आतमा, रुद्धि मले सवि आई रे ॥ वी० ॥२॥ इति प्रथम अरिहंतपद पूजा समाप्ता ॥ १ ॥ ॥ अथ द्वितीय सि६पदपूजा प्रारंभः ॥ ॥ काव्यं ॥ इंद्रवज्रावृत्तम् ॥ ॥ सिण माणंसुरमालयाणं ॥ ॥ नमो नमोऽणंतचनक्कयाणं ॥ ॥ भुजंगप्रयातवृत्तम् ॥ ॥ करी आठ कर्मये पार पाम्या, जरा जन्म मरयादि जय जेणे वाम्या || निरावरण जे आत्मरूपे प्रसिद्धा, यया पार पामी सदा सिद्धबुद्धा ॥ १ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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