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________________ श्रीयशोविजयजीकृत नपवदपूजा. ३२५ फिके शासनाधारदिग्दतिकटपा, जगे ते चिरंजीवजो शुद्धजपा ॥२॥ ॥ ढाल ॥ उलालानी देशी॥ ॥श्राचारज मुनिपति गणि, गुणवत्रीशी धामो जी॥ चिदानंद रस वादता, परनावे निःकामो जी॥१॥ जलालो ॥ निःकाम निर्मल शुद्ध चिद्घन, साध्य निज निरधारथी ॥ निज ज्ञान दर्शन चरण वीरज, साधनाव्यापारथी ॥ नविजीव बोधक तत्त्वशोधक, सयल गुणसंपत्ति धरा ॥ संवरसमाधि गतउपाधि, मुविध तपगुण घागरा ॥२॥ ॥ पूजा ॥ ढाल ॥ श्रीपालना रासनी॥ ॥ पंच आचार जे सूधा पाले, मारग नाखे साचो॥ ते आचारज नमीए तेहशुं, प्रेम करीने जाचो रे ॥ न० ॥ सि० ॥ ११॥ वर उत्रीश गुणे करी सोहे, युगप्रधान जन मोहे ॥जग बोहे न रहे खिण कोहे, सूरि नमुं ते जोदे रे ॥ ज०॥ सि० ॥ १२ ॥ नित्य अप्रमत्त धर्म उवएसे, नहीं विकथा न कषाय ॥ जेहने ते श्राचारज नमीए, अकलुष अमल अमाय रे ॥ज ॥ सिम् ॥ १३ ॥ जे दीए सारण वारण चोयण, पमिचोयण वली जनने ॥ पटधारी गल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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