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________________ ३१७ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥ ढाल बारमी॥ ॥ चोवीश चोकनी देशी ॥ ॥दे साहेबजी ! नेक नजर करी नाथ सेवकने तारो, हे साहेबजी ! महेर करी पूजानुं फल मुज आलो॥ ए श्रांकणी ॥ प्रनु तुज मूरति मोहन वेली, पूजे सर अपबरा अलबेली, वर धनसार केशरशं नेली ॥ हे सा॥१॥ सिकाचल तीर्थ नवि सेवो, चउद देत्रे तीर्थ नहीं एवो, एम बोले देवाधिदेवो ॥ हे सा ॥२॥ गिरनारे जइए नेम पासे, श्हां जावी जिन सिकि जाशे, जस ध्याने पातकमां नासे ॥हे सा॥ ३॥ बुगढे आदि जिनराया, नेमनाथ शिवादेवी जाया, जस चोस इंछे गुण गाया ॥ हे साप ॥४॥ वली समेतशिखरे जगना ईश, गया मोदे जिनराया वीश, ध्येय ध्यावो नविजन निशदिश ॥ हे सा॥५॥ अष्टापदे सकल करम टाली,प्रजु वरीया शिववधू लटकाली, आदीश्वर पूजतां दीवाली ॥ हे सा॥६॥ ए श्रादे तीर्थ प्रणमो रंगे, वली पूजो प्रजुने नव अंगे, कहे धर्मचंग अति उमंगे ॥ हे सा॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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