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श्रीधर्मचंद्रजीकृत नंदीश्वरद्वीपपूजा.
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सुणी आणंदो रे ॥ ० ॥ चोपन सहस्स देवाधिदेव रे ॥ ० ॥ जस सारे सुरपति से व रे ॥ श्र० ॥ ५ ॥ एकसो ग्यार धुर त्रिके रे ॥ ० ॥ जिनचैत्य धारो सुविवेके रे ॥ श्र० ॥ त्रण से वीश तेर हजार रे ॥ ८० ॥ पूजतां पामे जवपार रे ॥ ० ॥ १० ॥ त्रिक बीजीए एकसो सात रे ॥ ० ॥ पडिमा बार सदस्स विख्यात रे ॥ ० ॥ श्रवसें अधिक नमो चाली रे ॥ ० ॥ सुर पूजे जावे नीहाली रे ॥ श्र० ॥ ११ ॥ त्रिक त्रीजीए एकसो सार रे ॥ ० ॥ प्रथमो बिंब बार हजार रे ॥
० ॥ अनुत्तरे पांच चैत्य विशाल रे ॥ ० ॥ बसें जिन नमो थइ उजमाल रे ॥ ० ॥ १२ ॥ एम कल्प कल्पातीत देवा रे ॥ ० ॥ द्रव्य जावे करे जिनसेवा रे ॥ ॥ ० ॥ कहे धर्म जवि नित्य पूजो रे ॥ ० ॥ जगतारक देवन डूजो रे ॥ ० ॥ १३ ॥ काव्यं ॥ स्नात० ॥ इति दशमा निषेके दशम पूजा संपूर्णा ॥ १० ॥
॥ अथ एकादश पूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ पन्नर क्षेत्रे प्रभु तणी, पडिमा सासय जेह ॥ तेनां पदपंकज नमुं करवा पापनो बेह ॥ १ ॥
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