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________________ ३१४ विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. थाय ॥ म० ॥ १५ ॥ काव्यं ॥ स्नात० ॥ इति अष्टमानिषेके अष्टम पूजा समाप्ता ॥७॥ ॥ अथ नवम पूजा प्रारंजः ॥ ॥दोहा॥ ॥ सात कोमि बहोत्तेर लाख, अधोलोके जिनगेह॥ तेरसें नेव्याशी कोमि, साठ लाख बिंब एद ॥१॥ ॥ ढाल दशमी॥ ॥ काज सीधां सकल हवे सार ॥ ए देशी ॥ ॥ हवे असुरकुमारे देहरां, कह्यां चोसठ लाख जलेरां ॥एकसोपन्नर कोमिजाएं, पमिमा वीश लाख वखाणुं ॥१॥ सासय जिनवरने पूजीजे, नरजवनो लाहो लीजे ॥ वली नागकुमारे कहीए, चैत्य लाख चोराशी लहीए ॥ एकसो ने एकावन कोमि, वीश लाख नमुं कर जोडी ॥ सा० ॥२॥ चैत्य बहोत्तेर लाख विचार, सुवर्णकुमारे श्रीकार॥एकसो ने उंगणत्रीश कोम, साठ लाख उपर जिन जोड ॥ सा० ॥३॥ विद्युत् श्रग्नि छीप कुमार, उदधि दिग स्त नित सार ॥ चैत्य षनिकाये वखाणो, लाख बोतेर बोतेर जाणो ॥ सा ॥४॥ कोमि एकसो ने उनीश, लाख एंशी नमो निशदिश ॥ एक निकाये एटला Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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