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श्रीधर्मचंद्रजीकृत नंदीश्वरछीपपूजा. ३१५ होय, तेम पांच निकाये जोय ॥ सा० ॥ ५॥जिनप्रासाद बन्न लाख, वायुकुमार मांहे नाख ॥ कोड एकसो बहोत्तेर जिनराय, एंशी लाख पूजे कुःख जाय ॥ सा ॥६॥ अधोलोकना जिनवर गाया, जग सुजश पमह वजाया॥कहे धर्म नवि उजमाल, थर पूजो जगत्दयाल ॥ सा ॥७॥काव्यं ॥स्नातक ॥ इति नवमानिषेके नवम पूजा संपूर्णा ॥ ए॥ ॥ अथ दशम पूजा प्रारंजः॥
॥दोहा॥ ॥ ऊर्ध्व लोके जिनवर घर, लाख चोराशी जाण॥ सहस्स सत्ताएं उपरे, त्रेवीशर्नु परिमाण ॥१॥ एकसो बावन कोमिजिन,लाख चोराणुं सार॥सहस्स चुमालीश वंदीए, सातसें ने साठ धार ॥२॥
॥ ढाल अगीयारमी॥ ॥ सिझाचल शिखरे दीवो रे॥आदे०॥ए देशी॥ ॥सौधर्मे चैत्यज कहीए रे॥अरिहा पूजो अलबेला॥ लाख बत्रीश संख्या लहीए रे ॥ ॥ लाख साठ सत्तावन कोमि रे॥०॥पमिमा वंदो कर जोमी रे॥ अ० ॥१॥ चैत्य अडवीश लाख जाणो रे ॥०॥ ईशान खर्गे वखाणो रे॥०॥कोडि पच्चास ने लाख
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