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________________ एत विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. ॥अथ ॥ ॥श्रीनंदीश्वरवीपपूजा प्रारंजः॥ ॥ अथ प्रथम पूजा प्रारंजः॥ ॥दोहा॥ ॥प्रणमुं शांति जिणंदने, चउद रयणपति जेह ॥ कंचनवणे सोहता, लक्षण लक्षित देह ॥१॥ सुरगिरि अष्टापद गिरि, गिरनार बाबू तेम ॥ समेतशिखर ए पांचमो, वंषु बहु धरी प्रेम ॥२॥समरी शारद मातने, रचुं पूजा हुँ रसाल ॥ जेम सुणतां नवि प्राणीने, हर्ष वधे तत्काल ॥३॥ विस्तीर्ण जिनजुवनमां, रची नंदीश्वर छीप ॥ तदनंतर प्रजु थापीने, करो अनिषेक प्रदीप॥४॥ एकादश अनिषेक श्हां, सामान्ये धरो चित्त ॥ आउ अधिक शत तो करो, होय विशेष प्रीत ॥५॥ सकल सामग्री मेलवी, श्रद्धावंत नर नार ॥ जल कलशा निज कर धरो, पामवा नवजलपार ॥६॥ रही सम श्रेणी बिहुं दिशे, वाजते मंगल तूर ॥ पूजा प्रजुनी जणावीए, करवा अघ चकचूर ॥७॥ ॥ ढाल पदेली॥ ॥ अने हारे वालो वसे विमलाचले रे॥एदेशी ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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