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श्रीविजयलक्ष्मीसूरिकृत वीश स्थानकनी पूजा. श्ए सुंदर नावीया, श्रावक श्राविका, पुण्यवंता ॥ वीश थानक तणी, जक्ति करे जावधी, शासनउन्नति, अति करंता ॥ घj०॥३॥ तास तणे आग्रहे, स्तवन पूजा रची, शुरू करो श्रुतधरा, पुण्य जाणी॥ विजयआनंद गणि, विजयसौजाग्य सूरि,विजयलक्ष्मी सूरि, जैन वाणी ॥ घणुं ॥४॥ इति ढाल समाप्ता ॥
॥ कलश ॥ ॥ एम वीश थानक, तवन कुसुमे, पूजीयो शंखेश्वरो ॥ संवत् समिति, वेद, वसु, शशी, (१७४५); विजयदशमी मन धरो ॥ तपगल विजयानंद पटधर, श्रीविजयसौनाग्य, सूरीश्वरो॥श्रीविजयलक्ष्मी, सूरि पजणे, सयल संघ मंगल करो ॥१॥
॥इति श्रीविजयलक्ष्मीसूरिकृता विंशति
स्थानकपदपूजा समाप्ता ॥
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