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श्रीधर्मचंद्रजीकृत नंदीश्वरद्वीपपूजा.
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॥ छाने हांरे शासननायक जगविनु रे, स्याद्वादना जाणहार, ज्ञान वडो गुण प्रभु कहे रे ॥ श्री त्रिशला - नंदन वीर ॥ ज्ञा० ॥ ० ॥ पांच प्रकारे ते ज्ञान बे रे, मति श्रुत अवधि श्रीकार ॥ ज्ञा० ॥ १ ॥ श्र० ॥ मनः पर्यव केवल जलुं रे, जे प्रगटे दुःख नहीं कोय ॥ ज्ञा० ॥ श्र० ॥ ऊर्ध्व श्रधो तिर्छा लोकनुं रे, जे निश्चे ज्ञानयी होय ॥ ज्ञा० ॥२॥ ० ॥ सुरलोक गेवि श्रणुत्तरे रे, जिनप्रतिमा पूजे जे देव ॥ ज्ञा०॥ ० ॥ जाणे ते केवलज्ञानथी रे ॥ ऊर्ध्व लोके रह्या सिद्धदेव ॥ ज्ञा० ॥ ३ ॥ ० ॥ भुवनपति अधोलोकमां रे, प्रजुनी करे नक्ति रसाल ॥ ज्ञा० ॥ श्र० ॥ तिर्खा लोके व्यंतर ज्योतिषी रे, जिनपूजा करे त्रण काल ॥ ज्ञा० ॥ ४ ॥ ० ॥ जंबू धातकी खंगमां रे, पुष्करार्द्ध द्वीप मोकार ॥ ज्ञाणाश्रणा करी न करी प्रतिमा तपी रे, करे पूजा सुर नर नार ॥ ज्ञा० ॥ ५॥ श्र०॥ दश देत्रे दश चोविशी रे, पांच विदेहे वीश विहरमान ॥ ज्ञा० ॥ श्र० ॥ ते प्रजुनी वाणी सुणे रे, जवि पामवा निश्चय ज्ञान ॥ ज्ञा० ॥ ६ ॥ श्र० ॥ ते माटे श्रावक जावशुं रे, प्रभु पूजो थइ उजमाल ॥ज्ञा०॥०॥ कहे धर्मचंद्र जिनध्यानश्री रे, लड़े केवलज्ञान विशाल ॥ झा० ॥ ॥ इति श्री प्रथम ढाल समाप्ता ॥
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