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________________ Iur विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम. सोवन पंकज, बेठा सुर नर पूजो हो ॥ ज० ॥ ३॥ क्षीणमोदी मुनि रत्नपात्र सम, बीजा कंचन सम पात्र ॥ रजतना श्रावक समकित वा अविरति लोह मट्टी पत्ता हो ॥ ज० ॥ ४ ॥ मिथ्यात्वी सहस्थी एक अणुव्रती, अणुव्रती सहस्सथी साधु ॥ साधु सहस्रथी गणधर जिनवर, अधिका टाले उपाधि हो ॥ ज० ॥ ५ ॥ पांच दान दश दानमां मोटां, अजय सुपात्र विदिता ॥ एहथी हरिवाहन दुर्ज जिनवर, सौभाग्यलक्ष्मी गुणगीता हो ॥ ज० ॥ ६ ॥ इति गोयमपदपूजा पंचदशी ॥ १५ ॥ ॥ अथ षोमश जिनपदपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ दोष ढारे कय गया, उपना गुण जस अंग ॥ वैयावच्च करीए मुदा, नमो नमो जिनपद संग ॥ १ ॥ ॥ ढाल ॥ चौद लोकके पार कहावे ॥ ए देशी ॥ ॥ जिनपद जगमां जांचं जाणो, खरूपरमण सुविलासी ॥ सोल कषाय जीते ते जिनजी, गुणगण अनंत उजासी ॥ जिनपद जपीए, जिनपद नजीए, जिनपद श्रति सुखदायी ॥ १ ॥ ए श्रांकणी ॥ श्रुत हि मनः For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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