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________________ श्रीविजयलक्ष्मीसूरिकृत वीश स्थानकनी पूजा. चौद हजार साधुमां अधिका, धन्ना तपगुण जरीया हो प्राणी ॥ तप० ॥५॥ षड़ नेद बाहेर तपना प्रकाश्या, अन्यंतर षडू नेद ॥ बार नेदे तप तपतां निर्मल, सफले अनेक उमेद हो प्राणी ॥ तप॥६॥ कनककेतु एद पदने श्राराधी, साधी श्रातम काज तीर्थंकरपद अनुनव उत्तम, सौजाग्यलदमी महाराज हो प्राणी ॥ तप० ॥ ॥ इति तपःपदपूजा चतुर्दशी ॥ १४ ॥ ॥ अथ पंचदश गोयमपदपूजा प्रारंनः ॥ ॥दोहा॥ ॥ बह तप करे पारj, चउनाणी गुणधाम ॥ए सम शुज पात्र को नहीं, नमो नमो गोयम स्वाम॥१॥ ॥ ढाल ॥ दादाजी मोहे दर्शन दीजे हो ॥ ए देशी॥ ॥दान सुपात्रे दीजे हो नविया,दान सुपात्रे दीजे॥ए यांकणी॥लब्धि अठ्यावीश ज्ञानी गोयम, उत्तम पात्र कहीजे हो ॥ नम्॥१॥महर्त्तमांचौद प्ररव रचीयां. त्रिपदी वीरथी पामी॥चौदसैं बावन गणधरवांद्या, ए पद अंतरजामी हो ॥०॥२॥गणेश गणपति महामंगल पद, गोयम विण नवि जो ॥ सहस्र कमलदल वि० १९ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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