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________________ २७ विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥ अथ चतुर्दश तपःपदपूजा प्रारंनः॥ ॥ दोहा॥ ॥ कर्म तपावे चीकणां, नाव मंगल तप जाण ॥ पचास लब्धि उपजे, जय जय तप गुणखाण ॥१॥ ॥ ढाल ॥ अलगी रहेने, रहेने, रहेने, रहेने, अलगी रहेने ॥ ए देशी ॥ - ॥ तपपदने पूजीजे हो प्राणी, तपपदने पूजीजे ॥ ए आंकणी ॥ सर्व मंगलमा पहेढुं मंगल, निकाचित टाले ॥ क्षमा सहित जे श्राहार निरीहता, श्रातमझकि नीहाले हो प्राणी ॥ तप० ॥१॥ ते जव मुक्ति जाणे जिनवर, त्रण चल ज्ञाने नियमा ॥ तोये तप आचरण न मूके, अनंत गुणो तपमदिमा हो प्राणी ॥ तप० ॥२॥ पीठ अने महापीठ मुनीश्वर, पूरव जव मति जिननो ॥ साधवी लखमणा तप नवि फलीयु, दंन गयो नहीं मननो हो प्राणी ॥ तप० ॥३॥ अग्यार लाख ने एंशी हजार, पांचसें पांच दिन ऊणा ॥ नंदन शषिए मासखमण करी, कीधां काम संपून्नां हो प्राणी ॥ तप० ॥४॥ तप तपीया गुणरत्न संवत्सर, खंधक दमाना दरिया ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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